छठ पूजा: जानिए छठ पूजा के बारे में कुछ रोचक जानकारी

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छठ पूजा

छठ पूजा मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश व बिहार राज्य में मनाया जाता है। ये पर्व दिवाली के छठवें दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इसमें सूर्य देव और देवी उषा और प्रत्युषा की पूजा की जाती है। उषा सूर्योदय के समय की पहली किरण को तथा प्रत्युषा सूर्यास्त के समय की आखिरी किरण को कहा जाता है। छठ पूजा में सूर्यास्त और सूर्योदय के समय की पहली किरण को अर्घ्य दे कर सूर्य देव की पूजा की जाती है।

कब हुआ प्रारम्भ

ये पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है, माना जाता है कि 6000 साल से पहले से ये पर्व पूरे भारत में मनाया जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार सर्वप्रथम देवी अदिति ने इस पूजा को प्रारम्भ किया था, जब देवता असुरों से हार गए थे तो अदिति ने देवी कात्यायनी(षष्ठी देवी) की उपासना करके सर्वगुण संपन्न पुत्र की कामना की जिसके फलस्वरूप आदित्य भगवान हुए और उन्होंने देवताओ को विजय दिलाई। यही से छठ पूजा का प्रारंभ हुआ।

कैसे मनाते हैं?

ये पर्व चार दिन का होता है,पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है।

जिसे व्रत करना होता है वो दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। ईख सूर्य देव को अर्पण करना महत्वपूर्ण होता है। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। और निर्जला व्रत को तोड़ते हैं जिसे पारण कहते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं। सुबह के अर्घ्य देने के बाद लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं। ठेकुआ(खस्ता) प्रमुख प्रसाद होता है।

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छठ पूजा का महत्व

यह चार दिवसीय पर्व एक मात्र पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है इस पर्व को रामायण और महाभारत काल में भी मनाया जाता था, इस पूजा को महिलाएं पुरुष दोनों कर सकते हैं, आज ये प्राचीन पर्व केवल बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश तक सीमित रह गया है। हालांकि ये पर्व नेपाल में भी मनाया जाता है। इस पूजा में 36 घंटे तक लगातार निर्जला व्रत रखना पड़ता है। इस पर्व का उद्देश्य सूर्य देवता को पृथ्वी पर जीवन के महत्वपूर्ण कारक बनने के लिए धन्यवाद देना होता है। इसमें किसी भी तरह से मूर्ति पूजा का कोई प्रचलन नहीं है। नहाय खाय, खरना, सन्ध्या अर्घ्य(प्रत्युषा अर्घ्य) तथा उषा अर्घ्य ये इस चार दिवसीय पर्व के भाग हैं।

छठ गीत:- “काँच ही बाँस के बहँगीया, बहंगी लचकत जाय” प्रमुख छठ की लोकगीत है।

ये प्राचीन त्योहार आज केवल कुछ राज्यो तक सीमित रह गया है हम सब को इससे पुनर्स्थापित करना होगा ताकि हमारे संस्कृति की प्राचीनता लुप्त न हो जाये।

आप सभी को छठ पर्व को हार्दिक शुभकामनाएं।

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